۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
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हौज़ा/स्वयंसेवी बल 'बसीज' के हफ़्ते की मुनासेबत पर बड़ी तादाद में बसीजियों ने इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई से तेहरान में मुलाक़ात की। इस मौक़े पर उन्होंने कहा कि बसीज एक कल्चर का नाम है बसीज का मतलब सबकी सेवा, मुल्क की सेवा और दूसरों के लिए ख़ुद को वक़्फ़ कर देना हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,स्वयंसेवी बल 'बसीज' के हफ़्ते की मुनासेबत पर बड़ी तादाद में बसीजियों ने इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई से तेहरान में मुलाक़ात की। इस मौक़े पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने बसीज के स्थान और महत्व को एक फ़ौजी संगठन से कहीं ऊपर बताया।


उन्होंने कहा कि बसीज एक कल्चर का नाम है। बसीजी होना, गुमनाम मुजाहिदों का कल्चर है। बेग़रज़ व ख़तरा मोल लेने वाले मुजाहिदों का कल्चर है, न डरने का कल्चर है। बसीज का मतलब सबकी सेवा, मुल्क की सेवा और दूसरों के लिए ख़ुद को वक़्फ़ कर देना है।


आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने बसीज की ख़ूबियों को इस तरह गिनवायाः बसीजी का मतलब मज़लूम को निजात दिलाने के लिए ख़ुद ज़ुल्म सहना है। हालिया घटनाओं में मज़लूम बसीजियों ने ज़ुल्म सहे ताकि क़ौम, मुट्ठी भर ग़ाफ़िल या जाहिल या बिके हुए दंगाइयों के ज़ुल्म की शिकार न हो। ख़ुद ज़ुल्म  सहते हैं ताकि दूसरों पर ज़ुल्म न होने पाए।
उन्होंने इसी तरह इस्लामी इंक़ेलाब के दौरान बसीजी जज़्बा बढ़ने का ज़िक्र किया और कहा कि सरकश शाही हुकूमत के दौर में भी स्वयंसेवा या बसीज का जज़्बा था जिसे विदेशियों या ख़ुद बेईमान हुकूमतों के हाथों कुचल दिया जाता था लेकिन इस्लामी इंक़ेलाब के दौरान यह सलाहियत बढ़ी और उसके बाद इमाम ने बसीज में जान फूंक दी और यह सलाहियत हरकत में आ गयी।


इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इस बात का ज़िक्र किया कि इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने बसीज को पाकीज़ दरख़्त क़रार दिया था। आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने पाकीज़ा दरख़्त की क़ुरआन में बयान की गई ख़ासियतों का ज़िक्र किया और कहा कि बसीज की सरगर्मियों का एक फल यह कै कि यह इंक़ेलाब में ताज़गी और भरपूर ज़िन्दगी मौजूद होने का पता देती हैं। उन्होंने आगे कहा कि बेग़रज़, गुमनामी के साथ संघर्ष का जज़्बा, मुल्क में तेज़ी से आगे बढ़ने की लहर पैदा करता है। बसीज जो भी सरगर्मियां करता है उसमें रूहानियत का पहलू नुमायां कर देता है और वह अमल के साथ आइडियॉलोजी को भी मद्देनज़र रखता है।
उन्होंने अपने बयान के दूसरे भाग में, एशिया के तअल्लुक़ से यूरोप और अमरीका के ख़ास रवैये की ओर इशारा किया और बल देकर कहा कि पश्चिमी साम्राज्यवाद की दो वर्ल्ड वॉर के बाद, पहले यूरोप और बाद में अमरीका ने इस इलाक़े के तअल्लुक़ से ख़ास रवैया अपनाया। 
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने वेस्ट एशिया के तअल्लुक़ से अमरीका और यूरोप के इस रवैये की वज़ाहत में, वेस्ट की इंडस्ट्रीज़ को चलाने में तेल के रोल का ज़िक्र किया। उन्होंने कहाः दुनिया में तेल का अस्ली भंडार यहाँ है। वेस्ट एशिया, पूरब और पश्चिम को जोड़ने वाला इलाक़ा है, इसलिए पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने वेस्ट एशिया पर ख़ास नज़र रखी और इसी वजह से जाली ज़ायोनी शासन को वजूद दिया।
उन्होंने इस बात की वज़ाहत में कि ज़ायोनी शासन को क्यों वजूद दिया गया, कहा कि पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने इस इलाक़े पर हावी रहने के लिए, यहाँ जंग शुरू करवाने, जंग थोपने, उसे बढ़ाने, लूटमार करने के लिए, ज़ायोनी शासन को वजूद दिया और उसे इस इलाक़े में पहले यूरोप और फिर बाद में अमरीका की फ़ौजी छावनी क़रार दिया। 
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इस बारे में आगे कहा कि वेस्ट एशिया में एक प्वाइंट है जो सबसे ज़्यादा अहम है और वह ईरान है, इसकी वजह यह है कि वह इस इलाक़े के मुल्क़ों में सबसे ज़्यादा दौलतमंद है।

तेल, गैस, नेचुरल रिसोर्सेज़ और इस मुल्क की भौगोलिक पोज़ीशन भी बड़ी अहम है। इस वजह से ईरान के संबंध में उन्होंने ज़्यादा कोशिशें कीं। पहले ब्रितानी आए और उन्होंने जितना मुमकिन था पैठ बनायी और उसके बाद अमरीकी आए और ईरान पर हावी हो गए। यह इंक़ेलाब से पहले मुल्क और इलाक़े की हालत थी।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इस विषय को जारी रखते हुए आगे कहा कि ईरान में इस्लामी इंक़ेलाब ने अचानक उनके सारे ख़वाब चकनाचूर कर दिए। पश्चिम की सोच यह है कि ईरान की स्ट्रैटिजिक डेप्थ छह मुल्कों तक है, इन छह मुल्कों (इराक़, सीरिया, लेबनान, लीबिया, सूडान और सोमालिया) में हुकूमतों का तख़्ता उलट दिया जाना चाहिए। उन्होंने इसकी तैयारी कर ली थी ताकि ईरान को नुक़सान पहुंचाएं। मगर उनकी साज़िश इस्लामी जुम्हूरिया की अज़ीम व कारसाज़ फ़ोर्स से नाकाम हो गयी और इस अज़ीम ताक़त का परचम बुलंद करने वाले शहीद क़ासिम सुलैमानी थे।
उन्होंने दुश्मन की तरफ़ से जेसीपीओए दो और जेसीपीओए तीन पर इसरार का ज़िक्र करते हुए कहा कि जेसीपीओए-टू का मतलब है इलाक़े में ईरान का असर पूरी तरह से ख़त्म हो जाए, ईरान का इलाक़े में कोई भी रोल न हो और जेसीपीएओ-थ्री का मतलब है ईरान स्ट्रैटिजिक लेहाज़ से अहम कोई भी  हथियार न बना सके, उसके पास ड्रोन न हो, मीज़ाईल न हों।
इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर ने कहा कि दुश्मन का सबसे बड़ा हथियार झूठा प्रचार है। उन्होंने कहा इस वक़्त दुश्मन सबसे बड़ा काम यह कर रहा है कि वह झूठा प्रचार कर रहा है। दुश्मन के टीवी चैनल या साइबर स्पेस से झूठी ख़बरें और समीक्षाएं पेश की जाती हैं, झूठे मरने वालों का नाम लिया जाता है। उन्होंने बल देकर कहा कि जान लीजिए आज दुश्मन झूठ पर काम कर रहा है। तो जब आपको पता चल गया तो स्वाभाविक रूप से आपके कंधे पर सच को सामने लाने का फ़रीज़ा है, जिसके बारे में मैं पहले भी कह चुका हूं और उसकी एक जगह यहाँ है।
उन्होंने दुश्मन की ओर से ग़फ़लत में डालने के हथकंडे और अवाम और मीडिया का ध्यान फ़ुटबॉल वर्ल्ड कप की तरफ़ केन्द्रित होने का ग़लत फ़ायदा उठाने की कोशिशों की ओर से मुल्क के ओहदेदारों को सचेत किया। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने मुल्क और मुल्क से बाहर के हालात पर ध्यान केन्द्रित रखने पर ताकीद की। उन्होंने कहा कि हमारे लिए मुल्क के आस-पास के हालात अहमियत रखते हैं, हमारे लिए वेस्ट एशिया का इलाक़ा भी अहम है, कॉकेशिया का इलाक़ा भी अहम है और पूर्वी इलाक़े भी अहम हैं।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अपनी तक़रीर के एक हिस्से में फ़ुटबॉल वर्ल्ड कप में वेल्ज़ पर ईरानी टीम की हालिया फ़त्ह का ज़िक्र करते हुए कहाः कल नैश्नल टीम के खिलाड़ियों ने क़ौम का दिल ख़ुश कर दिया। इंशा अल्लाह, ख़ुदावंदे आलम उन्हें भरपूर ख़ुशियां अता करे।

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